Thursday, February 28, 2008

मध्य-प्रदेश लेखक संघ ने प्रस्ताव आहूत किए

म० प्र० लेखक संघ भोपाल ने अपने परिपत्र में कार्यकारणी की घोषणा करते हुए २००८ के लिए निम्न लिखित सम्मानों के प्रस्ताव आहूत किए हैं:-
  • अक्षर-आदित्य-सम्मान, आयु-सीमा ६० वर्ष,
  • पुष्कर-सम्मान,६० वर्ष तक की आयु सीमा
  • देवकी-नंदन-सम्मान,३५-५० , आयु वर्ग के रचनाकारों के लिए,
  • काशी-बाई-मेहता-सम्मान,किसी भी आयु की महिला लेखिका,के लिए,
  • कस्तूरी देवी चतुर्वेदी,लोक-भाषा-सम्मान,म०प्र० की लोक भाषा, की महिला साहित्यकार को , योग्य प्रस्ताव के अभाव में पुरुष साहित्यकार के नाम पर विचार किया जाएगा ,
  • माणिक वर्मा,व्यंग्य-सम्मान,
  • चंद्रप्रकाश जायसवाल,बाल-साहित्य-सम्मान,
  • पार्वती देवी मेहता अहिन्दी भाषी हिन्दी-साहित्यकार
  • डा० संतोष कुमार तिवारी -समीक्षा सम्मान, ६० वर्ष आयु से अधिक आयु के समीक्षक को , शिथिलाताएं संभावित
  • हरिओम शरण चौबे गीतकार सम्मान,
  • कमला देवी लेखिका सम्मान
  • मालती वसंत सम्मान [द्वि-वार्षिक ] १८ वर्ष आयु वर्ग की युवा लेखिका को
  • सारस्वत-सम्मान,
  • अमित रमेश शर्मा हास्य-व्यंग्य के लिए

प्रस्ताव के लिए म०प्र० के साहित्यकार,जिला एकांशों के पदाधिकारियों से सम्पर्क कर सकते हैं । अथवा निम्न लिखित पतों पर सम्पर्क

कीजिए:-

  1. श्री बटुक-चतुर्वेदी ,१४/८,परी-बाज़ार,शाहाज़हानाबाद, भोपाल,म०प्र०
  2. गिरीश बिल्लोरे मुकुल एकांश अध्यक्ष , जबलपुर ,एकांश,९६९/ए-२,गेट न० ०४, जबलपुर

[ क्रमांक २ से केवल प्रस्ताव हेतु प्रपत्र -प्राप्ति हेतु सम्पर्क कीजिए]

Monday, February 25, 2008

एक ख़त : पूर्णिमा वर्मन जी के नाम

http://abhivyakti-hindi.org/ <= लिंक पर उपलब्ध अभिव्यक्ति-अनुभूति की संपादिका को आज लिखे ख़त को सभी के लिए पोस्ट करना ज़रूरी है.....पूर्णिमा जी सादर अभिवादन आज ही जबलपुर में हिन्दी-साहित्य सम्मेलन जबलपुर जिला इकाई बैठक में आपकी चर्चा हुई। मो। मोइनुद्दीन "अतहर",प्रदीप"शशांक", सनातन बाजपेई जी,एवं श्री राम ठाकुर दादा आदि को प्राप्त सम्मान के लिए उन्हें शुभकामना देने का अवसर भी था , आज अभी-अभी अभिव्यक्ति पर छपी इस सूचना => "ये रचनाएँ मौलिक तथा अप्रकाशित होनी चाहिए। इन्हें किसी भी पत्र-पत्रिका, या वेब साइट अथवा ब्लॉग पर पहले प्रकाशित नहीं होना चाहिए। यदि बाद में यह पता चला कि रचना मौलिक नहीं थी या पहले प्रकाशित हो चुकी थी तो मानदेय की धनराशि का भुगतान रोका जा सकता है। यदि भुगतान कर देने के बाद इनके पूर्व प्रकाशित होने की जानकारी मिलती है तो भविष्य में उस कवि लेखक की रचनाओं का प्रकाशन अभिव्यक्ति व अनुभूति में हमेशा के लिए रोका जा सकता है।" के लिए आपके प्रति कृतज्ञ हूँ , आपकी इस पहल के बाद अन्य वेब-पत्रिकाएँ इसी तरह अलर्ट रहेगीं तो साहित्यिक-चौर्य-कर्म पर प्रतिबन्ध लगेगा। अंतर जाल पर साहित्य को लेकर भी आज बेहद प्रभावी चर्चा हुई बार बार आपका ज़िक्र सुन कर अच्छा लगा . शुभ कामनाओं के साथ गिरीश बिल्लोरे मुकुल प्रति, पूर्णिमा वर्मन, संपादक ,अभी-अनु, प्रतिलिपि:- वेब-पत्रिकाओं के संपादक गण

Sunday, February 24, 2008

बावरे-फकीरा,

किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी !!

Feb 21, 05:05 pm फिरोजपुर [जागरण संवाददाता]। ंवो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी.. हे राम. व आदमी आदमी को क्या देगा जो भी देगा खुदा देगा.. जैसी कालजयी गजलें लिखने वाले मशहूर शायर सुदर्शन फाकिर सोमवार को इस दुनिया से रुखसत हो लिए। अफसोस कि पंजाब को एक अलग पहचान देने वाले इस शख्स को पंजाबियों और पंजाब ने नहीं पहचाना। वर्ष 1937 में फिरोजपुर के गुरुहरसहाय कस्बे के रत्ताखेड़ा गांव में डाक्टर बिहारी लाल कामरा के यहां जन्म लेने वाले सुदर्शन फाकिर के परिवार में दो अन्य भाई भी थे। बड़े भाई का देहांत हो चुका है। जालंधर में रहने वाले छोटे भाई विनोद कामरा के यहां फाकिर साहब ने जिंदगी के आखिरी लम्हे बिताए। फाकिर साहब के अजीज मित्रों कहना है कि उनकी याददाश्त काफी तेज थी। जिस शख्स से वह मिल लेते थे, उसे दोबारा अपना नाम नहीं बताना पड़ता था। यह अलग बात है कि फाकिर साहब को उनके घर का पता कभी याद नहीं रहा। वर्ष 1970 से पहले जालंधर में आल इंडिया रेडियो में नौकरी करने वाले फाकिर साहब को वहां मन नहीं लगा। उन्होंने नौकरी छोड़ दी और मुंबई चले आए। 2005 में वह मुंबई से वापस आकर जालंधर में अपने छोटे भाई के यहां रहने लगे। सत्तर के करीब गजल लिखने वाले फाकिर की प्रतिभा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन दिनों बेगम अख्तर सिर्फ पाकिस्तान के शायरों की गजल ही गाया करती थीं। मगर, फाकिर साहब पहले भारतीय शायर हैं, जिनकी लिखी गजल बेगम अख्तर ने बुलाकर ली और अपनी आवाज दी। वह मशहूर गजल थी 'इश्क में गैरते जज्बात नेरोने न दिया..'। बाद में चित्रा सिंह ने भी इसे गाया था। मोहम्मद रफी ने उनकी गजल 'फलसफे इश्क में पेश आए हैं सवालों की तरह..' गाकर दुनिया में धूम मचा दी। इस नज्म ने फाकिर को नई पहचान दी। जब गजल गायक जगजीत सिंह ने उनके द्वारा लिखी गजल 'वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी.' गाया उसके बाद फाकिर केनाम का डंका दुनिया में ऐसा गूंजा कि उसकी खनक आज भी सुनाई देती है। उनके द्वारा लिखित गजल 'जिंदगी मेरे घर आना..' गाकर भूपिंदर सिंह ने फिल्म फेयर अवार्ड जीता। वहीं गुलाम अली ने 'कैसे लिखोगे मोहब्बत की किताब तुम तो करने लगे पल-पल का हिसाब..' गाकर गजलों के इस सम्राट को सलाम किया था। फाकिर का अंतिम शेर जो दुनिया के सामने नहीं आ सका, वह था 'लाश मासूम की हो या कि कातिल की, जनाब हमने अफसोस किया है..'। वर्ष 1982 में गजल की एक कैसेट रिलीज की गई थी, उसमें मीरा व कबीर के सात भजन थे और आठवां भजन फाकिर साहब ने लिखा था। वहीं फाकिर साहिब का एक गीत 'आखिर तुम्हें आना है जरा देर लगेगी..' भी काफी पसंद किया गया था। इसका बालीवुड फिल्म यलगार के लिए इस्तेमाल किया गया था। http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_4198016/ पर सम्पूर्ण समाचार उपलब्ध है। हिंद-युग्म के राजीव रंजन,शैलेश जी , फाकिर साहब के जीवन और उनको सूचना संसार से उपेक्षित रहने को लेकर दु:खी हें जिन्दगी से बात करतीं गजल,जिन्दगी की बात करती ग़ज़ल, और जब सुदर्शन जी की शायरी ,बेगम अख्तर की आवाज़ के रथ पे सवार लगती कोई साम्राज्ञी की शोभा यात्रा हो, नए दौर में जगजीत सिंह के स्वरों के जारी हमारे कानों से सीधे दिल मी उतर वहीं बस गयी लगती फाकिर साहब की गज़लें. यूनुस खान ने बताया की सुदर्शन फाकिर इंटरव्यू, आत्म प्रकाशन जैसी बातों से दूर ही रहतें थे . एक गंभीर शायर जो आम बोल चाल के शब्दों को ग़ज़ल में आसानी से बदल देने वाले सुदर्शन फाकिर नहीं रहे वो बात कैसे लाते थे सादगी अपने कलाम में सुदर्शन फाकिर इस बात को समझने के लिए अब केवल हमको निर्भर रहना होगा उनकी रचनाओं पर किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी मुझ को एहसास दिला दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी मेरे रुकने से मेरी साँसे भी रुक जायेंगी फ़ासले और बड़ा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी ज़हर पीने की तो आदत थी ज़मानेवालो अब कोई और दवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी चलती राहों में यूँ ही आँख लगी है 'फ़ाकिर' भीड़ लोगों की हटा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी v सुदर्शन फ़ाकिर की रचनाएँ आदमी आदमी को क्या देगा आज के दौर में ऐ दोस्त आज तुम से बिछड़ रहा हूँ अगर हम कहें और वो मुस्कुरा दें अहल-ए-उल्फ़त के हवालों पे चराग़-ओ-आफ़ताब ग़ुम ढल गया आफ़ताब ऐ साक़ी दिल के दीवार-ओ-दर पे क्या देखा दुनिया से वफ़ा करके फ़ल्सफ़े इश्क़ में पेश आये ग़म बढ़े आते हैं हम तो यूँ अपनी ज़िन्दगी से मिले इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात जब भी तन्हाई से घबरा के जिस मोड़ पर किये थे किसी रंजिश को हवा दो कुछ तो दुनिया की इनायात मेरे दुख की कोई दवा न करो मेरी ज़ुबाँ से मेरी दास्ताँ पत्थर के ख़ुदा पत्थर के सनम फिर आज मुझे तुम को सामने है जो उसे लोग बुरा कहते हैं शायद मैं ज़िन्दगी की सहर शैख़ जी थोड़ी सी पीकर आइये उल्फ़त का जब किसी ने उस मोड़ से शुरू करें ये दौलत भी ले लो ये शीशे ये सपने ज़ख़्म जो आप की इनायत है ज़िन्दगी तुझ को जिया है वो काग़ज़ की कश्ती दिल तोड़ दिया पत्थर के ख़ुदा गिरीश बिल्लोरे "मुकुल" 9424358167 girishbillore@gmail.com

other link's http://www.hindimedia.in/content/blogsection/6/66/ ,http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_4198016/

Friday, February 22, 2008

पंकज गुलुश ने भी याद किया तिरलोक जी को ,मुझे भी याद आ रहे हें....!

एक व्यक्तित्व जो अंतस तक छू गया है । उनसे मेरा कोई खून का नाता तो नहीं किंतु नाता ज़रूर था । कमबख्त डिबेटिंग गज़ब चीज है बोलने को मिलते थे पाँच मिनट पढ़ना खूब पङता था । लगातार बक-बकाने के लिए कुछ भी मत पढिए ,1 घंटे बोलने के लिए चार किताबें , चार दिन तक पढिए, 5 मिनट बोलने के लिए सदा ही पढिए, ये किसी प्रोफेसर ने बताया था याद नहीं शायद वे राम दयाल कोष्टा जी थे ,सो मैं भी कभी जिज्ञासा बुक डिपो तो कभी पीपुल्स बुक सेंटर , जाया करता था। पीपुल्स बुक सेंटर में अक्सर तलाश ख़त्म हों जाती थी, वो दादा जो दूकान चलाते थे मेरी बात समझ झट ही किताब निकाल देते थे। मुझे नहीं पता था कि उन्होंनें जबलपुर को एक सूत्र में बाँध लिया है। नाम चीन लेखकों को कच्चा माल वही सौंपते है इस बात का पता मुझे तब चला जब पोस्टिंग वापस जबलपुर हुयी। दादा का अड्डा प्रोफेसर हनुमान वर्मा जी का बंगला था। वहीं से दादा का दिन शुरू होता सायकल,एक दो झोले किताबों से भरे , कैरियर में दबी कुछ पत्रिकाएँ , जेब में डायरी, अतरे दूसरे दिन आने लगे मलय जी के बेटे हिसाब बनवाने,आते या जाते समय मुझ से मिलना न भूलने वाले व्यक्तित्व ..... को मैंने एक बार बड़ी सूक्ष्मता से देखा तो पता चला दादा के दिल में भी उतने ही घाव हें जितने किसी युद्धरत सैनिक के शरीर,पे हुआ करतें हैं। कर्मयोगी कृष्ण सा उनका व्यक्तित्व, मुझे मोहित करने में सदा हे सफल होता..... ठाकुर दादा,इरफान,मलय जी,अरुण पांडे,जगदीश जटिया,रमेश सैनी,के अलावा,ढेर सारे साहित्यकार के घर जाकर किताबें पढ़वाना तिरलोक जी का पेशा था। पैसे की फिक्र कभी नहीं की जिसने दिया उसे पढ़वाया , जिसके पास पैसा नहीं था या जिसने नही दिया उसे भी पढवाया । कामरेड की मास्को यात्रा , संस्कार धानी के साहित्यिक आरोह अवरोहों , संस्थाओं की जुड़्न-टूटन को खूब करीब से देख कर भी दादा ने इस के उसे नहीं कही। जो दादा के पसीने को पी गए उसे भी कामरेड ने कभी नहीं लताडा कभी मुझे ज़रूर फर्जी उन साहित्यकारों से कोफ्त हुई जिनने दादा का पैसा दबाया । कई बार कहा " दादा अमुक जी से बात करूं...? रहने दो ...? यानी गज़ब का धीरज । सूरज राय "सूरज" ने अपने ग़ज़ल संग्रह के विमोचन के लिए अपनी मान के अलावा मंच पे अगर किसी से आशीष पाया तो वो थे :"तिरलोक सिंह जी "। इधर मेरी सहचरी ने भी कर्मयोगी के पाँव पखार ही लिए। हुआ यूँ कि सुबह सवेरे दादा मुझसे मिलने आए किताब लेकर आंखों में दिखना कम हों गया था,फ़िर भी आए पैदल । सड़क को शौचालय बनाकर गंदगी फैलाने वाले का मल उनके सेंडिल में.... मेन गेट से सीढियों तक गंदगी के निशान छपाते ऊपर आ गए दादा. अपने आप को अपराधी ठहरा रहे थे जैसे कोई बच्चा गलती करके सामने खडा हो. इधर मेरा मन रो रहा था कि इतना अपनापन क्यों हो गया कि शरीर को कष्ट देकर आना पड़ा दादा को .संयुक्त परिवार के कुछ सदस्यों को आपत्ति हुयी की गंदगी से सना बूढा आदमी गंदगी परोस गया गेट से सीडी तक . सुलभा के मन में करूणा ने जोर मारा . उनके पैर धुलाने लगी . मानव धर्म के आधार में करुणा का महत्त्व सुलभा से बेहतर कौन समझ पाया होगा तब. . तिरलोक जी का आशीर्वाद लेकर सुलभा ने जाने कितना कुछ हासिल किया मुझे नहीं मालूम . मेरे और अन्य साहित्यकारों के बीच के सेतु तिरलोक जी फिर एकाध बार ही आए अब तो बस आतीं हैं उनकी यादें दस्तक देने मन के दरवाजे तक ऐसा सभी साथी महसूस करते हैं. उनकी परम्परा को आगे जारी रखने के संकल्प के साथ जबलपुर के साहित्यकारों के दरवाज़े दस्तक देतें हैं मनोहर बिल्लोरे जी Ek koyala by Manohar Billore,

सत्य के साथ सृजनगाथा

तनवीर जी की पोस्ट हटाई सृजनगाथा ने

रायपुर से वेब पर प्रकाशित होने वाली सृजनगाथा के संपादक जी ने सत्यनिष्ठ होने का परिचय देकर साहित्य और न्याय का समर्तन किया और तनवीर जाफरी के नाम से प्रकाशित मेरी रचना "जीवन की बंजर भूमि में " लिंक ये थे => http://www.srijangatha.com/Permanent%20matter/vichar-withi.htm& http://www.srijangatha.com/2007-08/july07/vicharvithi.htm , हटा दिया है ।

संपादकीय कार्यालयः एफ-3, छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल, आवासीय कॉलोनी, रायपुर, 492001 ई-मेलः srijangatha@gmail.com,

चलते चलते इसे ज़रूर पढिए :-"सृजनगाथा : प्रसंगवश "

आप सभी इस दिशा में जागरूक रहिए,कहीं कोई........

शुभ रात्री

Thursday, February 21, 2008

साहित्यिक चोरी और हम सब

JEEVAN KEE BANJAR BHOOMI ,को दूसरे नाम से सृजनगाथा ने छापा या लेखक तनवीर ने छपवाया ये और बात है मुख्य मामला तो ये है कि मैंने साहित्यिक चोरी के खिलाफ़ पूरी ताक़त से मैंने आवाज़ उठाई ,मेरे करीब के लोग मुझे नसीहत देते नज़र आ रहे हैं। "तनवीर जाफरी ने बताया कि सृजनगाथा को नही भेजा आलेख उधर जयप्रकाश "मानस"जी ने ये देख http://www.srijangatha.com/Permanent%20matter/vichar-withi.htm& http://www.srijangatha.com/2007-08/july07/vicharvithi.htm कर उनसे सम्पर्क किया तो यही बात मानस जी ने सुनी फोन पर । अब चोरी है या तकनीकी गलती बात इस मुद्दे पे चली गयी सब को लग रहा है। वास्तव में तनवीर जाफरी ने लिखित जवाब न देकर अपने आप को बचाने की कोशिश भले की हों किन्तु बेनकाब हों गए बेचारे । चलो अब बहस शुरू करें असली वाली जिस देश में साहित्य मठाधीशी छाया में पनप रहा हों वहाँ चोरी चकारी संभाव संभव है । किन्तु हम चुप रहकर दोषी हैं । डाक्टर संध्या जैन श्रुति ,डाक्टर श्रीराम ठाकुर "दादा" ने बताया कि उनके आलेख,कवितायेँ भी इसी तरह चोरी गयी.....! उधर भोपाल के मशहूर पत्रकार विनय उपाद्याय की सहचरी की प्रकाशित रचना भी छपने उन्हीं के अखबार में छपने आयी । मेरा लक्ष्य "साहित्य में चोरी " के खिलाफ़ सभी साहित्य कारों की एक जुटता दर्शित करना है है।

JEEVAN KEE BANJAR BHOOMI

बी. बी. सी. उवाच

'जी स्पॉट का पता लगाया जा सकता है' इस पर मेरे नेटिया दोस्त ने कहां:- किसे फुरसत है फुरसत होते ही नींद लग जाती है....?

एलबम

Wednesday, February 20, 2008

जीवन की बंजर भूमि में

सम्बंधों की व्यावसायिकता और व्यवसायिकता के लिये सम्बंधों के लिये जाने जाना वाला यह समय कुल मिलाकर जड़ता का समय है। जीवनों के बीच केवल सम्बंध शब्द के अर्थ को समझना है तो थोड़ा सा बाजारवाद पर नज़र डालें। मैं यदि एक वस्तु बेच रहा हूँ तो ये बाजारवाद आप के लिये मुझमें केवल एक खरीददार का भाव पैदा कर देना होता है और आज इसकी खास ज़रूरत है। यदि विक्रेता के तौर पर यदि मैं यह कर सका तो तय है कि मैं सफल हूँ, व्यवसायिकता के लिये योग्य हूँ। तुमसे मेरा न कोई लेना देना था, न रहेगा, रहेगी तुम्हारे पास मेरी बेची हुई वस्तु और मेरे पास तुम्हारा पैसा जो कल पूँजी बन कर निगलने को आतुर होगा - समूचे मानव मूल्य। घबराईए मत बदलते दौर में पूँजीवाद के बारे में मैं नकारात्मक नहीं हूँ। मैं तो सम्बंधों की व्यवसायिकता बनाम व्यवसायिकता के लिये सम्बंध पर एक विमर्श करना चाहता हूँ। प्रथमत: सफल प्रोफेशनल्स के मामले में आप सहमत हो ही गए होगें। नहीं तो अब हो जाएंगे- एक बार एक अधिकारी ने सम्पूर्ण उर्जा का दोहन कर उसके मातहत को जाते-जाते कहा- “तुमसे मेरे बेहतरीन प्रोफेशनल रिलेशन थे, इसके अलावा और कुछ नहीं।” सम्बंधों का रसायन समझ मातहत ने अब अपनी क्षमता और भावात्मकता को पृथक-पृथक कर दिया। क्षमता के सहारे व्यवसायिक व्यापारिक सम्बंधों का निवर्हन करता- उसके मन में अब अपने संस्थान के लोगों से प्रबंधन से सिर्फ केवल व्यवसायिक सम्बंध हैं। यह तो संस्थानों की बात है। यहाँ यह एक हद तक जायज है। हद तो तब हो गई- संवेदनाओं की वकालत करने वाला एक शख्स -शहर में अपने अव्यवसायिक होने का डिण्डौरा मण्डला से डिण्डौरी तक पीट मारा। वो और उसके चेले-चपाटी जुट गए, अव्यवसायिकता की आड़ में व्यवसायिकता के ताने-बाने बुनने। सफल भी रहे- बहुतेरों को अपने सौम्य व्यक्तित्व के सहारे बेवकूफ बनाने में। हम जैसे कुछ मूर्ख नहीं बने, वो उसके लिये भात का कंकड़ ज़रूर बने। सुधि पाठकों - हमारे इर्द गिर्द अब केवल ऐसे लोग ही रह गए हैं उन लोगों की सूची कम होती जा रही है। जो मानवीय गुणों के आधार पर सम्बंध बनाते हैं। कमोवेश सियासत में भी यही सब कुछ है उन भाई ने बड़ी गर्मजोशी से हमारा किया। माँ-बाबूजी ओर यहाँ तक कि मेरे उन बच्चों के हालचाल भी जाने जो मेरे हैं हीं नहीं। जैसे पूछा- “गुड्डू बेटा कैसा है।” “भैया मेरी 2 बेटियाँ हैं।” “अरे हाँ- सॉरी भैया- गुड़िया कैसी है, भाभी जी ठीक हैं। वगैरा-वगैरा। यह बातचीत के दौरान उनने बता दिया कि हमारा और उनका बरसों पुराना फेविकोलिया-रिश्ता है। हमारे बीच रिश्ता है तो जरूर पर उन भाई साहब को आज क्या ज़रूरत आन पड़ी। इतनी पुरानी बातें उखाड़ने की। मेरे दिमाग में कुछ चल ही रहा था कि भाई साहब बोल पड़े - “बिल्लोरे जी चुनाव में अपन को टिकट मिल गया है।” “कहाँ से, बधाई हो सर” “.... क्षेत्र से” “मैं तो दूसरे क्षेत्र में रह रहा हूँ। यह पुष्टि होते ही कि मैं उनके क्षेत्र में अब वोट रूप में निवास नहीं कर रहा हूँ। मेरे परिवार के 10 वोटों का घाटा सदमा सा लगा उन्हें- बोले – “अच्छा चलूं जी !” पहली बार मुझे लगा मेरी ज़िंदगी कितनी बेकार है, मैं मैं नहीं वोट हूं। ये आलेख तनवीर जाफरी ने अपने नाम से या संपादक सृजनगाथा जयप्रकाश "मानस "ने तनवीर के नाम से "सृजनगाथा में छाप दिया मामला मोसेरों का है किन्तु मेरे घर से चोरी हुई है ये पक्की बात है "तनवीर जाफरी ने बताया कि सृजनगाथा को नही भेजा आलेख": "

आभास जबलपुर में

स्थानीय समाचार पत्रों से पता चला कि आभास आज जबलपुर आने वाला है तीन दिन पहले जितेन्द्र भाई बता रहे थे कि आभास का जबलपुर आने के प्रोग्राम की जानकारी उनको नहीं है....? आभास का अचानक आना तो नहीं किन्तु सूचना अखबार ने दी ये सोचने वाली बात है.....! कोई बात नहीं बडे शहरों में छोटी बातें होती रहती है समस्त सदस्य आभास जोशी स्नेह मंच का स्नेह बरकरार रहेगा

Saturday, February 9, 2008

upalabdh hain: बावरे फकीरा के वितरण अधिकार

अगर कोई म्यूजिक कम्पनी अपाहिज बच्चों की मदद के लिए बनाए गए इस "साई-भक्ति"एलबम के वितरण अधिकार खरीदना चाहे मेरा सौभाग्य होगा। यदि आभास जोषी ने इस एलबम को इस संकल्प के लिए कि "गरीब पोलियो ग्रस्त बच्चों की मदद की जाए " सोचकर अपने सुर दिए तो मैं नहीं समझता कि कोई और भी इस मामले में पीछे रहेगा।आप हमारे इस संकल्प में सहयोग कीजिए......हम प्रतीक्षा रत हें...... निवेदक

संगीतकार: श्रेयस जोषी , गीतकार:गिरीश बिल्लोरे मुकुल

फोन:09424358167,09926471072,

MAIL: girishbillore@gmail.com

Friday, February 8, 2008

सो कॉल्ड सोशल-वर्कर्स ज़रा :-"आशीष ठाकुर से सीखो !"

सो कॉल्ड शोशल वर्कर ज़रा :-"आशीष ठाकुर से सीखो !" समाज सेवको अँगुली कटा के महाराणा प्रताप बनने वाले नेताओं, समाज सेवा के समाचारों की पेपर कटिंग लेकर जमाने भर को दिखाने वालो , सरकार को दिन भर गरियाने वालो ,सब कान खोल के सुन लो "आशीष ठाकुर " जबलपुर की शान है.... जो न तो पुरूस्कार न तो सम्मान और न ही सराहना के लिए काम,करते है बस अंतरात्मा की आवाज़ बेसहारा , बे जुबां , बेनाता, देहों को पांच तत्व में मिलाने "शव-दाह" की जिम्मेदारी लेते हें , ६ वर्षों से जारी ये सिलसिला अब तक रूका नहीं सरकार आप आशीष के लिए क्या सोच रहे है...मुझे नही मालूम , लेकिन मेरा मन आशीष की समाज सेवा का मुरीद हों गया है॥ एक पुलिस कर्मी का बेटा मेग्मा कम्पनी का एग्जीक्यूटिव आशीष ने १००० बेसहारा-बेनाता देहों का अन्तिम संस्कार किया लोग समझतें हैं "ये सिर्फ आशीष की ड्यूटी है ...!" धर्म,वर्ग,भाषा,जाति, राजनीति के नाम पे हंगामा करने वालो अब तो चेतो आशीष से सीखो सच्ची समाज सेवा.....ये सलाह है आपके लिए मेरे लिए सबके लिए । लोग बाग़ आशीष के बारे में क्या सोचते हें मुझे नही मालूम मैं उनको देवदूत कहूं यकीन करने आप उनसे बात कर सकतें है ०९३००१२२२४२ पर । जबलपुर के इस साहस को सलाम ........ राम.....राम......

Thursday, February 7, 2008

" विधि आयोग ने भारत में लड़कों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष

नई दिल्ली। विधि आयोग ने भारत में लड़कों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष करने की सिफारिश की है।आयोग के अघ्यक्ष न्यायमूर्ति ए.आर. लक्ष्मण ने विधिमंत्री हंसराज भारद्वाज को उत्तराधिकार कानून और बाल विवाह के बारे में आज यहां सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में यह सिफारिश की है।आयोग के विशेषज्ञ कीर्ति सिंह ने पत्रकारों से बातीचत में कहा कि 18 वर्ष के बाद जब लड़के वोट दे सकते हैं और अन्य फैसले ले सकते हैं, तो फिर शादी के लिए 21 वर्ष तक इंतजार करने की बात तर्कसंगत नहीं है और न ही इसका कोई वैज्ञानिक आधार है।विशेषज्ञों ने यह सिफारिश भी की है कि 16 वर्ष से कम आयु की लड़की के साथ यौन संबंध को अपराध माना जाना चाहिए। भले ही वह शादीशुदा हो या नहीं।अगर सरकार आयोग की सिफारिश स्वीकार कर लेता है, तो 16 साल से कम आयु की पत्नी के साथ शारीरिक सबंध स्थापित करने वाले व्यक्ति को आरोपित किया जा सकता है। मौजूदा कानून के तहत 15 वर्ष से कम उम्र की शादीशुदा महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाना अपराध है।रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय कानून में उत्तराधिकार का रिश्तों के आधार पर वर्गीकरण किया गया है। न्यायमूर्ति लक्ष्मण ने कहा हिन्दू उत्तराधिकार कानून 1956 में तीन वर्ष पूर्व किए गए संशोधन में पुत्रियों को संपत्ति में बराबर का अधिकार दिया गया था। लेकिन ऐसा करते समय उत्तराधिकारी की कुछ श्रेणियों को नजरअंदाज कर दिया गया। आयोग ने यह स्वीकार किया कि कानून में कुछ खामियां रह गयी हैं।आयोग की सिफारिशें अनुसंधान समूह की रिपोर्ट का नतीजा-आयोग की ये सिफारिशें एक अनुसंधान समूह की रिपोर्ट के बाद सामने आई हैं, जिसमें कहा गया है कि बाल विवाह गैर कानूनी घोषित किए जाने के बाद भी देश के तीन बड़े राज्यों- मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और राजस्थान में यह बड़े पैमाने पर जारी है।दिल्ली स्थित अनुसंधान समूह ‘सेंटर फॉर सोश्यल रिसर्च’ की 3 फरवरी को प्रकाशिक रिपोर्ट में कहा गया है- “ऐसे लोग जिनके समुदायों में अभी भी बालविवाह का प्रचलन है उनमें से 77.2 फीसदी मध्यप्रदेश से हैं, 41 फीसदी राजस्थान से हैं और 10 फीसदी उत्तरप्रदेश से हैं”।विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर डाला है कि बालविवाह से बच्चों विशेष रूप से बालिकाओं, जो घरेलू हिंसा और यौन शोषण का शिकार हो रही हैं, के विकास पर बुरा असर पड़ रहा है। बालविवाह के चलते बालिकाएं शिक्षा के अधिकार से भी वंचित रह जाती हैं।