Saturday, March 29, 2008

*KHAZANA*: "लाडली-लक्ष्मी"से बालिकाओं के लिए सोच बदली है...!!"#links#links#links#links#links#links

*KHAZANA*: "लाडली-लक्ष्मी"से बालिकाओं के लिए सोच बदली है..!

आभास आज 18 साल का हों गया है

आभास को जन्म दिन की हार्दिक बधाइयां " भावों की सलाई लेकर हम शब्द बुने तुम सुर देना *********************** जीवन के सफर में मैंने भी कुछ सपन बुनें तुमको लेकर . कुछ स्वपन मेरे थे मुक्त गीत कुछ सपनों के तीखे तेवर ..? मन की पीडा जब गीत बने श्रेयस होगा तुम सुर देना ...!! ************************* आभास मुझे था जीवन में कुछ ऐसा हम कर जाएंगे देंगें इक मुट्ठी दान कभी भर-भर के झोली पाएँगें ..! जब मन इतराए बादल सा तुम सावन का रिम झिम सुर देना !! ************************** " आभास को जन्म दिन की हार्दिक बधाइयां " गिरीश चचा,सतीश हरीश,अंकुर,सोनू,श्रद्धा, चिन्मय,आस्था,अनुभा,शिवानी, एवं काशीनाथ बिल्लोरे एवं समस्त बिल्लोरे परिवार जबलपुर, के साथ बावरे फकीरा टीम,सुदर्शन परिवार,मनीष शर्मा,माधव सिंह यादव,

Sunday, March 23, 2008

उपयोग करके फैंकिए मत

आस का किसी ने जगाया था । उसने जीवन हर मोड़ पे नए नवेले मीठे-मीठे , खट्टे-खट्टे अनुभव की पोटली लेकर दिखाई दिया । वो सच्चा आदमी जब किसी का साथ देता तब डिफैन्सिव नहीं होता उसे अपना लक्ष्य स्पस्ट रूप से दिखाई दे रहा था। चलिए उस आदमी को नाम दे देतें हैं , उसका नाम आलू चमन था......अपना खून पसीना रामलाल को सफल करने में गिराता रहा । रामलाल अपनी जिन्दगी के साधारण स्तर से आजिज़ आ गया था , हर और आंशिक सफलता और क्विंटल भर असफलताएं लिए ख़ाक छानता । आलू चमन की मदद से आगे और आगे बढ़ता अब भूल गया लगता है रामलाल । ऐसे राम लालों की कमी कतई नहीं । इतने मकसद परस्तो,डिफेंसिव-खिलाडियों में कहीं आप तो नहीं यदि आप हैं तो आज कोशिश कीजिए उस मोटी कैंचुली से बाहर निकलनें की । शायद व्यावसायिकता के दौर से ,इंसानियत को बचा लाने में सफल होगें हम और आप

Sunday, March 16, 2008

होली तो ससुराल

होली तो ससुराल की बाक़ी सब बेनूर सरहज मिश्री की डली,साला पिंड खजूर साला पिंड-खजूर,ससुर जी ऐंचकताने साली के अंदाज़ फोन पे लगे लुभाने कहें मुकुल कवि होली पे जनकपुर जाओ जीवन में इक बार,स्वर्ग का तुम सुख पाओ..!! ######### होली तो ससुराल की बाक़ी सब बेनूर न्योता पा हम पहुंच गए मन संग लंगूर, मन में संग लंगूर,लख साली की उमरिया मन में उठे विचार,संग लें नयी बंदरिया . कहत मुकुल कविराय नए कानून हैं आए दो होली में झौन्क, सोच जो ऐसी आए ...!! ######### होली तो ससुराल की ,बाक़ी सब बेनूर देवर रस के देवता, जेठ नशे में चूर , जेठ नशे में चूर जेठानी ठुमुक बंदरिया ननदी उम्र छुपाए कहे मोरी बाली उमरिया . कहें मुकुल कवि सास हमारी पहरेदारिन ससुर देव के दूत जे उनकी हैं पनिहारिन..!! ######### सुन प्रिय मन तो बावरा, कछु सोचे कछु गाए, इक-दूजे के रंग में हम-तुम अब रंग जाएं . हम-तुम अब रंग जाएं,फाग में साथ रहेंगे प्रीत रंग में भीग अबीरी फाग कहेंगे ..! कहें मुकुल कविराय होली घर में मनाओ मंहगे हैं त्यौहार इधर-उधर न जाओ !!

आभार

स्पन्दन के लिए बेजी का कैसे आभार करें

नौ महीने गर्भ में आरंभ वात्सल्य ये सभी पोस्ट काबिले सम्मान हैं...

आभार

Thursday, March 6, 2008

महिला दिवस पर एक चिंतन "चिंता नहीं चिंतन की ज़रूरत है"

महिला सशक्तिकरण की चिंता करना और समाज के समग्र विकास में महिलाओं की हिस्सेदारी पर चिंतन करना दो अलग-अलग बिन्दु हैं ऐसा सोचना बिलकुल गलत है । लिंग-भेद भारतीय परिवेश में मध्य-कालीन देन है किन्तु अब तो परिस्थितियाँ बदल रहीं है किन्तु बदलती तासीर में भी महिला वस्तु और अन्य वस्तुओं के विक्रय का साधन बन गयी है. अमूल माचो जैसे विज्ञापन इसके ताज़ा तरीन उदाहरण हैं .क्या विकास के इस फलक पर केवल विज्ञापन ही महिलाओं के लिए एक मात्र ज़गह है...? ऑफिस में सेक्रेटरी,क्लर्क,स्टेनो,स्कूलों में टीचर,बस या इससे आगे भी-"आकाश हैं उनके लिए॥?"हैं तो किन्तु यहाँ सभी को उनकी काबिलियत पे शक होता है .होने का कारण भी है जो औरतैं स्वयम ही प्रदर्शित करतीं हैं जैसे अपने आप को "औरत" घोषित करना यानी प्रिवलेज लेने की तैयारी कि हम महिला हैं अत:...हमको ये हासिल हों हमारा वो हक है , .... जैसा हर समूह करता है।.....बल्कि ये सोच होनी चाहिए कि हम महिलाएं इधर भी सक्षम हैं...उस काम में भी फिट...! यहाँ मेरा सीधा सपाट अर्थ ये है की आप महिला हैं इसका एहसास मत .होने दीजिए ...सामाजिक तौर पे स्वयम को कमजोर मत सिद्ध करिए ... वरन ये कहो की-" विकास में में समान भागीदार हिस्सा हूँ.....!" दरअसल परिवार औरतों को जन्म से औरत होने का आभास कराते हैं घुट्टी के संस्कार सहजता से नहीं जाते ।आगे जाते-जाते ये संस्कार पुख्ता हो जातें हैं।मसला कुल जमा ये है कि महिला के प्रति हमारी सोच को सही दिशा की ज़रूरत है...वो सही दिशा है समग्र विकास के हिस्से के तौर पर महिला और पुरुष को रखने की कोशिश की जाए॥

सुनीता शानू जी.....ने.....महिला दिवस पर एक सामयिक रचना ......ब्लाग पर पोस्ट की है एक क्लिक कीजिए कविता केलिए मै और तुम उनके ब्लोंग पर यहाँ क्लिक करके देखिए "मन पखेरू फ़िर उड़ चला"

Saturday, March 1, 2008

रामकृष्ण गौतम

http://www.koitohoga.blogspot.com/ JABALPUR /ஜபல்பூர் /ಜಬಲ್ಪುರ್ /Jఅబల్పూర్ यानी अपने जबलैपुर या जबल+ई+पुर के रामकृष्ण गौतम का ब्लॉग "Least but not the Last_ _ _! ! !" देखने लायक तो है ही बेहतरीन भी है...... !! बधाइयां

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